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ख रीप हंगामाच्या पूर्वतयारी
Posted by chandanse in Agri Market, Agriculture, Farming, Marathi on June 20, 2011
पीक उत्पादनवाढीसाठी संकरित व अधिक उत्पादन देणाऱ्या सुधारित वाणांचा महत्त्वाचा वाटा असल्याने पेरणीसाठी बियाण्याची निवड करताना जास्त उत्पादन देणाऱ्या, खतास चांगला प्रतिसाद देणाऱ्या, कमी कालावधीत व कमी पाण्यात येणाऱ्या तसेच रोग व किडीस प्रतिकारक्षम असणारे वाण निवडावेत. शक्यतो प्रमाणित बियाणे पेरणीसाठी वापरावे. बियाणे खरेदी करताना त्याची उत्पादन तारीख, शुद्धता, वाणाचे/ जातीचे नाव, उगवणक्षमता इत्यादी सर्व गोष्टी पाहूनच बियाणे खरेदी करावे. बियाणे अधिकृत विक्रेत्याकडून खरेदी करून त्याची पक्की पावती घ्यावी. विकत घेतलेल्या बियाण्याच्या पिशवीस असलेले लेबल व टॅग जपून ठेवावा, यदाकदाचित बियाण्यात काही दोष आढळल्यास बिल, लेबल व टॅगची संबंधितांकडे तक्रार करताना गरज पडते.
पीक पेरणीपूर्वी बीजप्रक्रियेसाठी पिकानुसार शिफारस केलेल्या जिवाणू खतांची खरेदी करून ठेवावी. ज्वारी, बाजरी, भात, मका या एकदल व तृणधान्ये पिकासाठी ऍझोटोबॅक्टर, शेंगवर्गीय द्विदल पिकासाठी रायझोबियम हे जिवाणू संवर्धक वापरावे. वेगवेगळ्या गटातील पिकांना विशिष्ट प्रकारचे रायझोबियम वापरावे. स्फुरद विरघळणारे जिवाणू तसेच ट्रायकोडर्मा या बुरशीनाशकाचा आवश्यकतेनुसार बीजप्रक्रियेसाठी वापर करावा.
पूर्वहंगामी कापूस पिकासाठी उष्ण, कोरडे व कमी आर्द्रतायुक्त हवामान मानवते. या काळात रस शोषण करणाऱ्या किडींचा प्रादुर्भाव अत्यंत कमी असतो. पावसाळा सुरू होण्यापूर्वी पूर्वहंगामी कापूस पीक 25 ते 30 दिवसांचे होऊन त्यास पाते लागण्यास सुरवात होते. ठिबक सिंचनावर आधारित पूर्वहंगामी कापसाची लागवड योग्य वेळी करता येते व या पिकास पाण्याचा कोणताही ताण बसत नाही. सर्वसाधारणपणे पाच अश्वशक्तीचा पंप ताशी 18 ते 21 हजार लिटर पाणी देतो. एवढ्या पाण्यावर कमीत कमी दोन ते अडीच एकर क्षेत्रावर पूर्वहंगामी कापसाची लागवड मे महिन्याच्या तिसऱ्या आठवड्यापासून ठिबक पद्धतीने करणे शक्य आहे.
जमिनीची निवड ः
मध्यम ते भारी, काळी, कसदार, पाण्याचा उत्तम निचरा होणारी जमीन असावी. हलक्या, उथळ आणि पाणी धरून ठेवणाऱ्या जमिनीत कपाशीची लागवड करण्याचे टाळावे.
पूर्वमशागत ः
एक खोल नांगरट व दोन ते तीन कुळवाच्या पाळ्या देऊन ढेकळे फोडावीत. आधीच्या पिकाची धसकटे, पाला व काडीकचरा गोळा करून तो जाळावा व शेत स्वच्छ करावे. शेवटाच्या कुळवाच्या पाळीअगोदर 15 ते 20 गाड्या कुजलेले शेणखत जमिनीत मिसळून द्यावे.
ठिबक सिंचन संच उभारणी ः
पूर्वमशागत झाल्यावर शेताची पाहणी करून आराखडा तयार करावा. आराखड्याप्रमाणे ठिबक संचाची उभारणी करावी. पाण्याचा स्रोत आणि पाण्याच्या गुणवत्तेनुसार फिल्टरची निवड करावी. कापूस पिकासाठी ड्रीपरचा प्रवाह चार लिटर प्रति तास असलेल्या 12 किंवा 16 मि.मी. इनलाईन नळीची निवड करावी. इनलाईन नळीच्या दोन ड्रीपरमधील अंतर 60 सें.मी. किंवा 90 सें.मी. असावे. ठिबक सिंचन पद्धतीत जोडओळ पद्धत किंवा पट्टा पद्धतीचा अवलंब करावा, त्यामुळे प्रति हेक्टरी झाडांची संख्या कायम राहून खर्चात बचत होते, तसेच पीक फवारणी, आंतरमशागत व कापूस वेचणी ही कामे सोईस्कर राबविता येतात.
लागवड व्यवस्थापन ः
ठिबक सिंचन आधारित पूर्वहंगामी कापसाची लागवड करण्यासाठी अधिक उत्पादन देणाऱ्या संकरित जातींची निवड करावी. बी.टी. कापसाच्या अधिक उत्पादन देणाऱ्या व जास्त फळफांद्या असणाऱ्या जातीची निवड करावी. लागवड करताना जमिनीचा प्रकार, पाण्याची उपलब्धता, जाती इ. बाबींचा विचार करावा. लागवडीसाठी बियाणे लावण्यापूर्वी (पेरणीपूर्वी) 12 ते 14 तास ठिबक संच चालवून शेतात वाफसा होईपर्यंत ओलावा निर्माण करावा. नंतर शिफारस केलेल्या अंतरावर जमिनीच्या मगदुराप्रमाणे 60 ते 120 ु 90 सें.मी. किंवा 90 ते 180 ु 105 ते 120 सें.मी. अशा अनेक जोडओळ किंवा पट्टा पद्धतीने ठिबक संचालगत लागवड करावी. लागवड करताना इनलाईन नळीचे ड्रीपर व बियाणे लागवडीची जागा जवळ येतील याची काळजी घ्यावी.
वर्धा जिल्हा
Posted by chandanse in Development, Marathi on June 20, 2011
तहसिल | एकूण क्षेत्रफळ | जंगल व्याप्त क्षेत्र | ओलीत क्षेत्र | कोरडवाहू क्षेत्र | बिगर शेती वापराखालील जमीन | लागवडी लायक नसलेली जमीन |
आर्वी | 67932.00 | 4337.97 | 2098.68 | 42604.01 | 9931.46 | 8952.53 |
आष्टी | 31570.00 | 3553.43 | 1855.02 | 16456.26 | 2175.89 | 7481.59 |
कारंजा | 55872.00 | 7370.32 | 2554.25 | 35564.06 | 5227.02 | 5138.75 |
सेलू | 58857.00 | 3602.73 | 4449.07 | 36388.75 | 7014.01 | 7244.21 |
वर्धा | 69366.00 | 299.72 | 2773.98 | 47321.19 | 9163.43 | 9379.27 |
देवळी | 59318.00 | 108.79 | 1175.41 | 43761.39 | 7500.74 | 6911.14 |
हिंगणघाट | 80165.00 | 1711.15 | 2484.54 | 61492.52 | 5740.11 | 8606.83 |
समुद्रपुर | 79714.00 | 2709.75 | 3273.20 | 58016.47 | 6148.21 | 9668.95 |
गहू | जवार | बाजरी | हरभरा | तूर | मूग | उडीद | मटकी | ऊस | मिरची | फळे व भाजीपाला | कापूस | भुईमूग | तिळ | सोयाबीन | |
वर्धा | 1029 | 3175 | 24 | 642 | 2209 | 63 | 40 | 19 | 18 | 11767 | 1545 | 11767 | 423 | 42 | 3532 |
सेलु | 2420 | 3661 | 5 | 1549 | 2491 | 168 | 227 | 29 | – | 10685 | 2355 | 10685 | 2227 | 43 | 11353 |
समुद्रपूर | 1179 | 10394 | 15 | 483 | 5649 | 142 | 12 | 20 | 365 | 25295 | 1288 | 25295 | 216 | 64 | 4161 |
हिंगणघाट | 3312 | 5246 | – | 1569 | 4919 | 56 | 11 | 30 | 1577 | 21343 | 1194 | 21343 | 202 | 93 | 8130 |
देवळी | 2704 | 12200 | – | 915 | 6315 | 123 | – | 367 | 623 | 30118 | 1035 | 30118 | 41 | 228 | 3936 |
आर्वी | 79 | 6659 | 43 | 1396 | 7437 | 171 | – | 81 | – | 27048 | 55 | 27048 | 21 | 104 | 6684 |
आष्टी | 402 | 6341 | 13 | 3175 | 8314 | 84 | 16 | 117 | 11 | 36967 | 132 | 36967 | 3 | 384 | 15181 |
करंजा | 2374 | 7321 | – | 7104 | 6153 | 10 | 91 | 79 | 133 | 26718 | 934 | 26718 | – | 243 | 23619 |
तहसिल | कुट्रंबाची संख्या | लोकसंख्या | अनुसुचित जाती | अनुसुचित जमाती | ||||||
एकूण | पुरुष | स्रिया | एकूण | पुरुष | स्रिया | एकूण | पुरुष | स्रिया | ||
आर्वी | 23,361 | 102,923 | 53,073 | 49,850 | 13,469 | 6,919 | 6,550 | 19,855 | 10,194 | 9,661 |
आष्टी | 16,156 | 73,594 | 38,037 | 35,557 | 8,869 | 4,647 | 4,222 | 9,333 | 4,805 | 4,528 |
कारंजा | 19,735 | 88,720 | 45,592 | 43,128 | 7,648 | 3,954 | 3,694 | 13,454 | 6,925 | 6,529 |
सेलू | 26,448 | 120,026 | 61,720 | 58,306 | 12,586 | 6,548 | 6,038 | 20,356 | 10,442 | 9,914 |
वर्धा | 41,927 | 187,865 | 97,174 | 90,691 | 23,777 | 12,221 | 11,556 | 20,846 | 10,880 | 9,966 |
देवळी | 23,263 | 102,814 | 52,977 | 49,837 | 17,981 | 9,271 | 8,710 | 15,315 | 7,813 | 7,502 |
हिंगणघाट | 26,730 | 120,136 | 62,035 | 58,101 | 15,448 | 8,002 | 7,446 | 14,483 | 7,510 | 6,973 |
समुद्रपुर | 25,343 | 115,617 | 60,002 | 55,615 | 12,367 | 6,482 | 5,885 | 19,124 | 9,940 | 9,184 |
महिना | पाऊस (मिमी.) | पीइटी (मिमी.) | एइटी (मिमी.) | डब्ल्यूडी (मिमी.) | डब्ल्यूएस (मिमी.) |
जानेवारी | 18.40 | 810.00 | 19.10 | 790.90 | 0.00 |
फेब्रुवारी | 8.99 | 100.29 | 8.99 | 91.30 | 0.00 |
मार्च | 13.14 | 144.60 | 13.15 | 131.45 | 0.00 |
एप्रिल | 6.09 | 170.90 | 6.09 | 164.81 | 0.00 |
मे | 6.98 | 201.70 | 6.98 | 194.72 | 0.00 |
जून | 185.70 | 169.60 | 169.60 | 0.00 | 0.00 |
जुलै | 222.91 | 110.30 | 110.30 | 0.00 | 0.00 |
ऑगस्ट | 225.88 | 102.10 | 102.10 | 0.00 | 52.49 |
सप्टेंबर | 145.16 | 107.00 | 343.20 | 726.80 | 0.00 |
ऑक्टोबर | 58.11 | 112.20 | 58.57 | 53.63 | 0.00 |
नोव्हेंबर | 10.76 | 86.70 | 11.24 | 75.46 | 0.00 |
डिसेंबर | 0.84 | 73.20 | 1.15 | 72.05 | 0.00 |
एकूण | 902.96 | 2,188.59 | 850.47 | 2,301.12 | 52.49 |
महिना | पाऊस (मिमी.) | पीइटी (मिमी.) | एइटी (मिमी.) | डब्ल्यूडी (मिमी.) | डब्ल्यूएस (मिमी.) |
जानेवारी | 18.40 | 810.00 | 19.10 | 790.90 | 0.00 |
फेब्रुवारी | 8.99 | 100.29 | 8.99 | 91.30 | 0.00 |
मार्च | 13.14 | 144.60 | 13.15 | 131.45 | 0.00 |
एप्रिल | 6.09 | 170.90 | 6.09 | 164.81 | 0.00 |
मे | 6.98 | 201.70 | 6.98 | 194.72 | 0.00 |
जून | 185.70 | 169.60 | 169.60 | 0.00 | 0.00 |
जुलै | 222.91 | 110.30 | 110.30 | 0.00 | 0.00 |
ऑगस्ट | 225.88 | 102.10 | 102.10 | 0.00 | 52.49 |
सप्टेंबर | 145.16 | 107.00 | 343.20 | 726.80 | 0.00 |
ऑक्टोबर | 58.11 | 112.20 | 58.57 | 53.63 | 0.00 |
नोव्हेंबर | 10.76 | 86.70 | 11.24 | 75.46 | 0.00 |
डिसेंबर | 0.84 | 73.20 | 1.15 | 72.05 | 0.00 |
एकूण | 902.96 | 2,188.59 | 850.47 | 2,301.12 | 52.49 |
उझी माशीचा प्रादुर्भाव
Posted by chandanse in Agriculture, Farming, Marathi, Plant Pathology on June 20, 2011
भौतिक, रासायनिक व जैविक उपायांनी नियंत्रण करणे शक्य आहे.
भौतिक उपाय – कीटक संगोपनगृह, कोष खरेदीकेंद्र, अंडीपुंजनिर्मिती केंद्र, रेशीम धागानिर्मिती केंद्र इ. ठिकाणांवरील मॅगट व प्युपा गोळा करून जाळून नष्ट करावा किंवा 0.5 टक्के साबणाच्या द्रावणात नष्ट करावा. जमिनींना असलेल्या भेगा बुजवून घ्याव्यात. उझी माशीच्या प्रादुर्भावास बळी पडलेले रेशीम कीटक गोळा करून नष्ट करावेत.
रेशीम कीटकाच्या शरीरावर लहान एक ते दोन अंडी असणे किंवा रेशीम कीटकाच्या त्वचेवर काळ्या रंगाचा डाग असणे किंवा कोषाला छिद्र पाडून मॅगट बाहेर आलेला असणे.
हरळीचा प्रादुर्भाव नियंत्रणासाठी
Posted by chandanse in Agriculture, Marathi, Plant Pathology on June 20, 2011
बागेत फवारणी करताना पंपाला हूड लावूनच फवारणी करावी. तणनाशक झाडाच्या जवळपास किंवा हिरव्या भागावर पडणार नाही याची दक्षता घ्यावी. शेतात पाणथळ जागा राहणार नाही याकडे लक्ष द्यावे. तण हे लुसलुशीत व चार ते पाच पानांवर असावे. तणांच्या प्रादुर्भावानुसार हेक्टरी दोन ते चार लिटर ग्लायफोसेट प्रति 500-600 लिटर पाण्यातून फवारावे. फ्लॅट नोझलचा वापर करावा. फवारणी स्वच्छ सूर्यप्रकाशात करावी. ढगाळ वातावरणात करू नये. फवारणीनंतर 21 दिवसांपर्यंत शेताची मशागत करू नये. तणांच्या उगवणीपूर्वी बागेत ऍट्राझीन हे तणनाशक दीड ते तीन लिटर प्रति हेक्टरी फवारल्यास चांगले नियंत्रण मिळते.
उत्पादनासोबत कंपनी एक छोटी घडीपत्रिका किंवा माहितीपत्रिका देते. त्यात हे लेबल क्लेम दिलेले असतात. (तुम्ही लीफलेट उघडून पाहा. त्यात कीडनाशकाचे नाव, सक्रिय घटक, कोणकोणत्या पिकांवर, कोणकोणत्या किडी-रोग वा तणांचे नियंत्रण), वापरण्याची मात्रा व डोस, पाणी याचा एक तक्ता वा कोष्टक दिलेले असते. ही माहिती म्हणजेच लेबल क्लेम.
उदा. कंपनीने या कोष्टकात आपल्या कार्बेन्डॅझीम या उत्पादनाचा (बुरशीनाशक) डोस भुईमुगावरील टिक्का रोगासाठी प्रति हेक्टरी प्रति 600 लिटर पाण्यासाठी 225 ग्रॅम आहे असे जेव्हा लिहिलेले असते त्याचा अर्थ भुईमूग पिकावर टिक्का रोगाच्या नियंत्रणासाठी कार्बेन्डॅझीम या बुरशीनाशकाचा लेबल क्लेम आहे असा त्याचा अर्थ होतो. म्हणजेच विविध चाचण्यांतून पार पडल्यानंतर शास्त्रीय कसोटींवर आधारित सिद्ध झालेली किंवा करण्यात आलेली ही अधिकृत शिफारस होय. आता पॅकिंगवर लेबलच्या स्वरूपात जी माहिती कंपनी उपलब्ध करते त्याचे विस्तृत विवरण घडीपत्रिकेत असते. त्याला इंग्रजीत लीफलेट असे म्हणतात. प्रत्येक उत्पादनासोबत प्रत्येक कंपनी हे लिफलेट देते. पॅकिंगवरील माहितीवर कंपनीने असे लिहिलेलेच असते की अधिक माहितीसाठी लिफलेट वाचावे. मात्र अनेकवेळा बाटली एकीकडे, लीफलेट दुसरीकडे अशी विक्री केंद्रावर परिस्थिती असते. कोणत्याही परिस्थितीत बाटली किंवा उत्पादनाचा पुडा यासोबत दोन गोष्टी घेतल्याशिवाय शेतकऱ्याने दुकान सोडू नये. 1)खरेदीची पक्की पावती 2) लीफलेट (लेबलचे माहितीपत्रक वा घडीपत्रक)
लीफलेट घरी जाऊन सविस्तर वाचावे. अनेकवेळा लीफलेटवरील माहिती अत्यंत बारीक अक्षरात लिहिलेली असते, त्यामुळे ती डोळ्यांनी सहजासहजी वाचणे कठीण जाते. अशा वेळी चांगल्या दर्जाच्या भिंगाचा वापर करावा. शेतात किडींचे निरीक्षण करण्यासाठी आपल्याकडे भिंग असावेच लागते. त्याचा वापर करावा. लीफलेट कायम जपून ठेवावे. आपल्यासोबत अन्य शेतकऱ्यांनाही लेबल क्लेमचे महत्त्व समजावून द्यावे.
लेबल क्लेममुळे काय फायदे होतात?
शेतकऱ्याला त्या उत्पादनाच्या गुणवत्तेविषयी कायदेशीर हमी वा संरक्षण मिळते.
देशभरात विविध ठिकाणी (कृषी विद्यापीठे वा संशोधन संस्था) संबंधित कीडनाशकाच्या चाचण्या घेतलेल्या असतात. त्यामुळे सर्वत्र त्याची जैविक क्षमता तपासून मगच त्याची अधिकृतरीत्या ती शिफारस असते.
लेबल क्लेमद्वारे संबंधित कीडनाशकाची केवळ मात्रा, वापरण्याची वेळ निश्चित होते असे नाही, तर संबंधित पीक, मानव, पर्यावरण, मित्रकीटक, जनाव, जलाशय,मासे आदी घटकांवर कीडनाशकाच्या होणाऱ्या परिणामांच्या चाचण्या तपासलेल्या असतात. त्यानंतर ते सुरक्षित वापरासाठी घोषित करण्यात येते.
लेबल क्लेममधून “पीएचआय’ शेतकऱ्यांना समजून येतो. ज्यावरून पुढे “एमआरएल’ मिळवणे शक्य होते.
एखादे कीडनाशक वा कोणतेही रसायन आपण स्वतःच्याच निर्णयाने जर एखाद्या पिकावर वापरले तर त्याचा त्या पिकावर किंवा पाने, कळ्या, मोहोर, फळांवर प्रतिकूल परिणाम होऊ शकतो. लेबल क्लेम मिळालेल्या रसायनाच्या अशा चाचण्या घेतल्या असल्याने तो धोका टळला जाऊ शकतो.
लेबल क्लेममुळे एखाद्या रसायनाची चुकीची शिफारस करण्यास प्रतिबंध केला जाऊ शकतो. त्यामुळे शेतकऱ्याची दिशाभूल वा फसवणूक होणे टळू शकते.
सोयाबीन
Posted by chandanse in Agriculture, Manure, Marathi on June 20, 2011
1) शेतालगतचे बांध स्वच्छ करावे. 2) गोगलगायी दिसताच चिमट्याने अथवा हाताने गोळा करून उकळलेल्या पाण्यात टाकून माराव्यात. 3) संध्याकाळी शेतामध्ये ठराविक अंतरावर गवताचे ढीग ठेवावेत व सकाळी त्याखाली लपलेल्या गोगलगायी गोळा करून त्यांचा नाश करावा, तसेच पिकांच्या मुळाशेजारी गोगलगायींनी घातलेली पिवळसर पांढऱ्या रंगाची (100 ते 150च्या पुंजक्यात) साबुदाण्याच्या आकाराची अंडी गोळा करून नष्ट करावीत. 5) दहा लिटर पाण्यात एक किलो गूळ मिसळावा व त्या द्रावणात गोणपाटाची पोती भिजवून संध्याकाळी गोगलगायीग्रस्त शेतात ठराविक अंतरावर पसरावीत. गोगलगायी अशा पसरलेल्या पोत्यांखाली जमा होतात, सकाळ होताच त्यांचा वेचून नाश करावा. 6) सूर्योदयापूर्वी शेतातील गोगलगायी गोळा करून साबणाच्या पाण्यात बुडवून माराव्यात किंवा खड्ड्यात पुरून त्यावर चुन्याची भुकटी टाकावी. 7) जास्त उपद्रव असल्यास शेताभोवती दोन मीटर पट्ट्यात राख पसरून त्यावर मोरचूद आणि कळीचा चुना 2ः3 या प्रमाणात मिसळून त्याचा पातळ थर राखेवर द्यावा किंवा बांधाच्या शेजारी तंबाखू अगर चुन्याच्या भुकटीचा चार इंच पट्टा टाकावा, त्यामुळे गोगलगायींना शेतात येण्यापासून अटकाव करता येईल. पाऊस पडत असल्यास या पद्धतीचा उपयोग होत नाही. मेटाल्डीहाईड कीडनाशकाच्या गोळ्या बाजारात उपलब्ध आहेत. प्रादुर्भाव असलेल्या शेतात संध्याकाळच्या वेळी पाच किलो प्रति हेक्टरी या प्रमाणात शेतात टाकल्यास, त्या खाऊन गोगलगायी मरतात. 9) विषारी आमिष देऊनही गोगलगायी मारता येतात, त्यासाठी गव्हाचा किंवा भाताचा 50 किलो कोंडा दोन किलो गुळाच्या द्रावणामध्ये 10 ते 12 तास भिजवून ठेवावा. त्यामध्ये 25 ग्रॅम यीस्ट मिसळावे. या मिश्रणात मिथोमिल कीटकनाशकाची 50 ग्रॅम भुकटी मिसळून संध्याकाळी प्रादुर्भाव ग्रस्त क्षेत्रात प्रति हेक्टरी पसरून टाकावे. मिथोमिल हे
विषारी कीटकनाशक असल्यामुळे त्याचा वापर करताना प्लॅस्टिकचे हातमोजे घालावेत आणि नाका-तोंडावर कापड बांधावे. हे आमिष जनावरे व पाळीव प्राणी खाणार नाहीत याची काळजी घ्यावी. 10) सामूहिक प्रयत्न केल्यास प्रभावी नियंत्रण होते.
कापूस
Posted by chandanse in Agriculture, Irrigation, Marathi on June 20, 2011
ठिबक संच शेतात उभारण्यापूर्वी पुढील आवश्यक घटकांची पूर्तता करणे महत्त्वाचे आहे.
पूर्वमशागत ः संच उभारणीपूर्वी जमिनीची पूर्वमशागत करावी. उभी/ आडवी नांगरट व वखराच्या पाळ्याद्वारे जमीन भुसभुशीत करावी. भुसभुशीत जमिनीत ठिबक सिंचनाचे पाणी योग्य रीतीने पसरते. कापूस लागवडीच्या अंतरानुसार ठिबक सिंचन संचाचा आराखडा व उभारणी करावी. ठिबक सिंचन संचाची निवड करताना तडजोड करू नये. संचामध्ये नळ्यांव्यतिरिक्त फिल्टर व प्रेशर गेज हे महत्त्वाचे घटक जरूर जोडावेत.
फिल्टर अतिशय महत्त्वाचा ः इनलाईन ठिबक नळ्या तयार होत असतानाच त्यांच्या आत ठिबक तोट्या बसविलेल्या असतात, त्यामुळे इनलाईन नळ्या वरून स्वच्छ करता येत नाहीत म्हणून या पद्धतीत फिल्टरची निवड जास्त महत्त्वाची असते. सर्वसाधारणपणे जाळीचा फिल्टर हा सर्वच संचामध्ये बसविलेला असतो, मात्र पाण्याच्या गुणवत्तेनुसार इतरही फिल्टर बसविणे आवश्यक असते. विहिरीचे व बोअरचे पाणी असेल व कचऱ्याचे प्रमाण कमी असेल तर जाळीचा फिल्टर बसवावा. पाण्यामध्ये शेवाळे व तरंगणारे पदार्थ असतील, साचलेले पाणी असेल, तलावातील किंवा उघड्या शेततळ्यातील पाणी वापरायचे असल्यास वाळूचा फिल्टर असणे अत्यंत आवश्यक आहे, अन्यथा जाळीचा फिल्टर वारंवार चोक होऊन पाण्याचा पुरेसा प्रवाह संचास मिळत नाही. पाण्यातून वाळूचे, मातीचे, रेतीचे कण येत असल्यास हे कण संचात जाऊन ठिबक तोट्या बंद पडू शकतात. जुन्या बोअरवेल किंवा नवीन खोदलेल्या विहिरीतील पाण्याद्वारे असे कण येत असतात. यासाठी हायड्रोसायक्लॉन फिल्टर वापरावा. या फिल्टरद्वारे वाळूचे कण जास्त घनता असल्यामुळे पाण्याच्या वेगाने फिल्टरच्या बाहेर भिंतीकडे फेकले जाऊन तळाशी जमा होतात. नंतर हे कण वेगळे काढता येतात. सिंचनाच्या पाण्यात घनपदार्थ, सेंद्रिय पदार्थ व विरघळलेले क्षार कमी प्रमाणात, परंतु एकत्रितपणे असल्यास डिस्क फिल्टरची निवड करावी. या फिल्टरमध्ये प्लॅस्टिकच्या चकत्या एका नळीवर एकमेकांना चिकटून बसविलेल्या असतात. या चकत्यांवर बारीक खाचा असतात. फिल्टरमध्ये शिरलेले पाणी दोन चकत्यांमधील खाचांतून स्वच्छ होऊन बाहेर पडते. पाण्याच्या गुणवत्तेनुसार गरज पडल्यास दोन वेगवेगळे फिल्टर (उदा. ः जाळीचा व वाळूचा) एकत्रितपणे संचास बसविणे फायद्याचे असते.
प्रेशर गेज आवश्यक ः
प्रत्येक शेतकऱ्याने प्रेशर गेज (दाबमापक) घेणे आवश्यक आहे. संचामध्ये कमीत कमी दोन प्रेशर गेज असावे. एक प्रेशर गेज मुख्य पाइपलाइनवर फिल्टरच्या पूर्वी व दुसरा फिल्टरच्या नंतर बसवावा. संचाच्या आखणीनुसार संच किती दाबावर चालवायचा, फिल्टर केव्हा स्वच्छ करायचा, व्हेंचुरीद्वारे खत मिश्रित पाणी किती सोडायचे यासाठी प्रेशर गेज असण्याची गरज आहे.
इनलाईन नळ्या, ड्रीपर्सची निवड ः
संच योग्य दाबावर (साधारणत: एक कि. ग्रॅ./ वर्ग सें.मी.) सुरू नसल्यास पाण्याचे वितरण समान होत नाही व संच चालविण्याचा कालावधी ठरविल्यास त्यात चुका होऊ शकतात. ठिबक संचातील इनलाईन नळ्यांची निवड काळजीपूर्वक करावी. या नळ्या १२ मि.मी. व १६ मि.मी. मध्ये उपलब्ध आहेत. १२ मि.मी. व्यासाची इनलाईन नळी स्वस्त असते; परंतु तिची पाणी वाहून नेण्याची क्षमता कमी असते. या नळ्या वापरल्यास सबमेनवरील खर्चात वाढ होते, त्यामुळे शेताच्या आराखड्यानुसार दोन्ही प्रकारच्या (१२/१६ मि.मी.) नळ्यांद्वारे होणाऱ्या खर्चाची तुलना करून व त्याचा समन्वय साधूनच त्यांची निवड करावी. दोन ड्रीपर्समधील अंतर जमिनीच्या प्रकारानुसार निवडावे, कापसासाठी मध्यम जमिनीत दोन तोट्यांमधील अंतर ६० सें.मी. असते. तोट्यांतून बाहेर पडणारा प्रवाह साधारणत: २.२ ते ४.० लिटर प्रति तास असतो. विजेची उपलब्धता कमी वेळ असल्यामुळे अधिक प्रवाहाच्या तोट्या उपयुक्त ठरतात, यामुळे संच चालविण्याचा कालावधी कमी होतो.
लक्षात घ्या कापसाची पाण्याची गरज ः
बीटी कापसास पावसाच्या खंडाच्या दरम्यान एक किंवा दोन दिवसाआड ठिबकने पाणी द्यावे. पाणी देताना त्या दोन-तीन दिवसांचे एकत्रित बाष्पीभवन जितके असेल त्याच्या ५० टक्के इतक्या खोलीचे पाणी द्यावे. प्रत्येक ठिबक तोटीद्वारे किती लिटर पाणी द्यायचे हे काढण्यासाठी त्या तोटीद्वारे किती क्षेत्र भिजवायचे आहे हे लक्षात घेणे गरजेचे आहे. लागवडीनंतर सुरवातीच्या काळात झाडाच्या जवळचे क्षेत्रच भिजवायचे असल्यामुळे या वेळी पाण्याची गरज कमी असते.
समजा लागवडीतील अंतर ६० १२० सें.मी. इतके असेल तर प्रत्येक झाडाने व्यापलेले क्षेत्र ०.७२ चौ. मीटर इतके होईल. प्रत्येक झाडास एक तोटी दिलेली असल्यास व एकत्रित बाष्पीभवन आठ मि.मी. असल्यास प्रत्येक झाडास साधारण तीन लिटर पाणी दोन दिवसांनी द्यावे लागेल. ठिबकची तोटी चार लिटर प्रति तास प्रवाहाची असल्यास संच ४५ मिनिटे चालवावा लागेल. याप्रमाणे लागवडीचे अंतर व नळ्याची व ठिबक तोट्यांची मांडणी यानुसार संच चालविण्याचा कालावधी काढून संचाचे नियमन करता येईल. कापूस पिकाला हवामानानुसार सहा महिन्यांच्या कालावधीत ८०० ते ९०० मि.मी. पाण्याची गरज असते. कापसाच्या हंगामात या कालावधीत साधारण ४५० ते ५५० मि.मी. उपयुक्त पावसाची नोंद होते. त्यामुळे उरलेले ३०० ते ४०० मि.मी. पाणी ठिबक सिंचनाद्वारे द्यावे लागेल. बऱ्याचदा हंगामानंतरही काही बोंडे हिरवी असल्यामुळे पीक राखले जाते. अशावेळी झाडावरील बोंडांची संख्या, त्यापासून मिळणारे उत्पादन, कापूस वेचण्यासाठी मजुरांची उपलब्धता व कापसाचा बाजारभाव इ. बाबींचा विचार करून पीक सांभाळावे. अशावेळी ठिबकद्वारे उर्वरित हंगामासाठीही बोंडे भरण्यासाठी पाणी देणे गरजेचे आहे. उन्हाळ्यात पाणी कमी असल्यास बागायती बीटी कापसाची लागवड मे महिन्यात न करता २० जूनपर्यंत केली तरी फायद्याचे ठरते.
खत व्यवस्थापन :
बीटी कापसाला साधारणपणे १००:५०:५० किलो प्रति हेक्टरी नत्र, स्फुरद व पालाशचा वापर करावा. पिकाच्या हंगामाचा कालावधी लांबणार असल्यास (१८० दिवसांपेक्षा जास्त) यामध्ये ३० ते ५० टक्के वाढ करावी. याशिवाय हंगामापूर्वी मातीची तपासणी करून मातीत उपलब्ध अन्नद्रव्यांच्या प्रमाणात वरील मात्रेमध्ये गरजेनुसार बदल करावा. सूक्ष्म अन्नद्रव्यांचे प्रमाण कमी असल्यास आवश्यकतेनुसार त्यांचा वापर करावा. साधारणत: ६० ते ७० दिवसांनंतर मॅग्नेशिअम सल्फेट २५ ते ४० किलो प्रति हेक्टर या प्रमाणात वापर करावा. लागवडीपूर्वी उपलब्धतेनुसार शेवटच्या पाळीपूर्वी कुजलेले शेणखत जमिनीत मिसळून द्यावे. प्रवाही सिंचन पद्धतीने पाणी द्यायचे असल्यास तक्ता क्र. १ प्रमाणे खतांचे वेळापत्रक ठरवावे.
ठिबकद्वारे खते देण्याचे तंत्र ः
ठिबक संचाद्वारे खते देणेच जास्त योग्य असते. या प्रक्रियेस फर्टिगेशन म्हणतात. खते देण्यासाठी व्हेंचुरीचा वापर जास्त सोयीचा आहे. खतमिश्रित पाण्यात व्हेंचुरीचे एक टोक सोडून दुसरे टोक मुख्य पाइपला जोडले जाते व मुख्य पाइपवरील व्हॉल्व्हच्या साहाय्याने खतामधील पाणी मुख्य प्रवाहात सोडता येते. पाण्यात विरघळणारी सर्व खते या प्रक्रियेने पिकांना देता येतात. यासाठी संचासोबत व्हेंचुरी व बायपास असेंब्ली व्हॉल्व्हसह घेण्यासाठी दोन ते पाच हजार रुपये खर्च येतो.
ठिबक सिंचनाद्वारे पाणी व खतांची वापर कार्यक्षमता वाढविण्यासाठी विद्राव्य खतांचा वापर करणे अधिक फायद्याचे आहे. विद्राव्य खते उपलब्ध होत नसल्यास पारंपरिक खतांपैकी युरिया, पांढरा पोटॅश किंवा चांगल्या प्रतीचा म्युरेट ऑफ पोटॅश पाण्यात संपूर्ण विरघळत असल्यामुळे ठिबक संचातून द्यावा. ठिबकद्वारे खतांची मात्रा अनेक वेळा विभागून देता येते. खते एक दिवसाआड देणे शक्य नसल्यास, आठवड्यातून / पंधरवड्यातून एकदा द्यावे. यामुळे खतांचा कार्यक्षम वापर होऊन दर्जेदार उत्पादन मिळण्यास मदत होते. तक्ता क्र. २ मध्ये विद्राव्य खतांचे कापसासाठीचे वेळापत्रक दिलेले आहे. पिकाची कालावधी १८० दिवसांपेक्षा जास्त असल्यास १३५ दिवसांपर्यंत खते देण्यासाठी खतांच्या मात्रेत २० ते ३० टक्के वाढ करावी.
पीक विमा
Posted by chandanse in Agriculture, Insurance, Marathi on June 20, 2011
- अवर्षण, चक्रीवादळ आणि कीटक व रोग इत्यादीचा आपात यामुळे पीक वाया गेले तर शेतक-यांकरिता एका वित्तीय आधाराच्या उपायाची तरतूद करणे.
- पुढील हंगामाकरिता एका पीक अपयशानंतर एका शेतक-याची उधार पात्रता पूर्ववत करणे.
- शेती मध्ये प्रगतिशील शेती करण्याचे उपयोजन, उच्च मूल्य निविष्टि व उच्चतम तंत्रशास्त्र अंगीकारण्याकरिता शेतक-यांना उत्तेजन देणे.
- शेती उत्पन्नात स्थैर्य आणण्या करिता मदत करणे, मुख्यतः आपात वर्षांमध्ये.
राज्य | संरक्षित क्षेत्र (हेक्टर मध्ये) | संरक्षित पीके |
आंध्र प्रदेश | 3648680.76 | भात, जवार, बाजरा, मका, रगी, काळा हरभरा, हिरवा हरभरा, लाल हरभरा, भुईमूग (आय), भुईमूग (युआय), एरंडेल, सूर्यफूल, कापूस (आय), कापूस (युएन आय), ऊस (पी), ऊस, मिरची (आय), मिरची (युआय), केळी, सोयाबीन, लाल मिरची, कांदा |
आसाम | 13068.80 | आहू भात, साली भात, ताग, बोरो भात, गहू, रेइप व मोहरी, बटाटा, ऊस |
बिहार | 839012.71 | भात, मका, मिरची, गहू, चणा, मसुर, अरहर, रेइप व मोहरी, बटाटा, कांदा, ऊस, ताग |
छत्तीसगड | 1375145.37 | भात (युआय), कोडो कुटकी, भात (आय), सोयाबीन, भुईमूग, अरहर, जवार, तीळ, मका, गहू (युआय), गहु (आयआरआर), बेंगाल हरभरा, रेइप व मोहरी, जवस, बटाटा |
गोवा | 606.79 | भात, रगी, भुईमूग, ऊस, डाळी |
गुजरात | 1896094.18 | बाजरा, मका, काळा हरभरा, हिरवा हरभरा, तूर, केळी, भुईमूग, रगी, एरंडेल, मॉथ (पतंग), तीळ, कापूस, गहू (आय), गहू (युआय) रेइग व मोहरी, हरभरा, बटाटा, एस भुईमूग, एस बाजरा, जिरे, इझाबगोल, लसूण, कांदा |
हरियाणा | 71262.78 | बाजरा, मका, कापूस, अरहर, हरभरा, मोहरी |
हिमाचल प्रदेश | 20250.44 | भात, मका, बटाटा, गहू, सातू |
जम्मू व काश्मीर | 7588.61 | भात, मका, गहू (आय), गहू (युआय), मोहरी |
झारखंड | 517036.32 | भात, मका, बटाटा, गहू, रेइप व मोहरी, बेंगाल हरभरा |
कर्णाटक | 2692781.22 | भात (आय), भात (आरएफ), जवार (आय), जवार (आरएफ), बाजरा (आय), बाजरा (आरएफ), मका (आय), मका (आरएफ), रगी (आय), रगी (आरएफ), नवाने (आरएफ), सावे (आरएफ), तूर (आय), तूर (आरएफ), काळा हरभरा, हिरवा हरभरा (आरएफ), घोड्याचे चणे, भुईमूग (आय), भुईमूग (आरएफ), सूर्यफूल (आय), सूर्यफूल (आरएफ), सोयाबीन (आय), सोयाबीन (आरएफ), तीळ (आरएफ), एरंडेल (आरएफ), बटाटा (आय), बटाटा (आरएफ), कांदा (आय), कांदा (आरएफ), कापूस (आय), कापूस (आरएफ), मिरची (आय), मिरची (आरएफ), गहू (आय), गहू (आरएफ), बेंगाल हरभरा (आय), बेंगाल हरभरा (आरएफ), केशरफूल (सॅफ फ्लॉवर) (आरएफ), केशर फूल (आय), जवस |
केरळ | 24590.84 | भात, टॅपिओक, अननस, हळद, आले, केळी |
मध्य प्रदेश | 4548265.74 | भात (आय), भात (युएन), जवार, बाजरा, मका, कोडो कुटकी, तूर, भुईमूग, तीळ, सोयाबीन, कापूस, केळी, गहू (आय), गहू (युएन), बेंगाल हरभरा, रेइप व मोहरी, बटाटा, कांदा |
महाराष्ट्र | 1314168.56 | भात, जवार, बाजरा, मका, रगी, भुईमूग, सूर्यफूल, सोयाबीन, तीळ, नीगर, तूर, उडीद, मूग, कापूस, कांदा, ऊस, गहू (आय), गहू (युएन), जवार (आय), जवार (युएन), बेंगाल हरभरा, केशरफूल |
मेघालय | 4092.18 | आहू भात, साली भात, बोरो भात, आले, बटाटा, रेइप व मोहरी |
ओरीसा | 1089845.97 | भात, मका, भुईमूग, लाल हरभरा, नीगर, कापूस, मोहरी, बटाटा, ऊस |
राजस्थान | 5702717.89 | भात, जवार, बाजरा, मका, मूग, मॉथ (पतंग), उडीद, भुईमूग, गाय वाटाणा (कावपिया), सोयाबीन, अरहर, तीळ, एरंडेल, गवार, गहू, सातू, हरभरा, मोहरी, तारामीरा, मसुर, धणा, जिरे, मेथी, इझाबगोल, सोन्फ |
सिक्कीम | 20.43 | सोयाबीन, फिंगर मिलिट (बाजरी-ज्वारी इ. धान्ये), मका, अमान भात, आले, बटाटा, सातू, उडीद, मोहरी, गहू |
तामीळनाडू | 440005.64 | भात, रगी (युआय), रगी (आय), मका (आरएफ), भुईमूग (आय), कापूस (युआय), कापूस (आयआरआर), कापूस (तांदूळ सोबती), टॅपिओक, बटाटा, कांदा, हळद, केळी, मिरची, आले, घोड्याचे चणे, काळा हरभरा, ऊस, तीळ, बाजरा (आय), जवार (आय). |
उत्तरप्रदेश | 2585076.36 | भात, मका, उडीद, भुईमूग, सोयाबीन, ऊस, अरहर, जवार, बाजरा, तीळ, गहू, हरभरा, वाटाणा, मोहरी, बटाटा, मसुर |
पश्चिम बंगाल | 486718.53 | अमान भात, ऑस बोरो भात, मका, गहू, रेइप व मोहरी, बटाटा |
त्रिपुरा | 1735.47 | अमान भात, ऑस भात, बोरो भात, बटाटा |
उत्तरांचल | 23220.99 | भात, रगी, गहू, बटाटा |
अं. व नि. बेटे | 106.00 | भात |
पॉण्डेचेरी | 3719.53 | भात I, II, III, कापूस, ऊस, भुईमूग |
कार्यक्रम | खरीप | रबी |
कर्ज कालावधी | एप्रिल ते सप्टेंबर | ऑक्टोबर ते मार्च |
घोषणा स्वीकृति करिता कट-ऑफ तारीख | नोव्हेंबर | मे |
उत्पन्न आधार सामग्री स्वीकृतिकरिता कट-ऑफ तारीख | जानेवारी / मार्च | जुलै / सप्टेंबर |
- बिगर-ऋणको शेतक-या करिता प्रस्ताव प्रपत्र
- ऋणको शेतक-याकरिता घोषणा प्रपत्र
- बिगर-ऋणको शेतक-या करिता घोषणा प्रपत्र
कृषि विमा रक्कम / विमा हप्त्याची परिगणना :
कृषि विमा दाव्या करिता आवश्यक दस्तऐवज :
पिके
Posted by chandanse in Agriculture, Manure, Marathi on June 20, 2011
- सर्व शेतकय्रांनी (कर्जदार व बिगर कर्जदार) विमा प्रस्ताव बँकाना सादर करणेः ३१ जुलै २००७ (चालु वर्षी मुदत दिनांक ३१-०८-२००७ पर्यंत वाढविली आहे.)
- बँकानी विमा प्रस्ताव कृषी विमा कंपनीस पाठविणेः ३१-०८-२००७ योजनेच्या अधिक माहितीसाठी क्षेत्रीय पातळीवर कोणाशी संपर्क साधावा ?
पशुसंवर्धन
पशुसंवर्धन व्यवसायात ६० ते ६५ टक्के खर्च हा त्यांच्या आहारावर होत असतो. त्यामुळे चारा उत्पादन व व्यवस्थापनाद्वारे हा खर्च १० ते १५ टक्केपर्यंत कमी करता येतो. संपूर्ण वाढ झालेल्या दुधाळ जनावरास २५ ते ३० किलो हिरवा चारा, तसेच सहा ते आठ किलो वाळलेला चारा देणे आवश्यक आहे, तर शेळ्यांसाठी चार ते पाच किलो हिरवा चारा आणि एक ते दीड किलो वाळलेला चारा पुरविणे फायद्याचे ठरते.
जनावरांना दिला जाणारा चारा हा सकस व संतुलित असणे आवश्यक असते; या चाऱ्यामध्ये प्रथिने, स्निग्ध, ऊर्जा, खनिजे व जीवनसत्त्वे भरपूर प्रमाणात असली पाहिजेत. जनावरांच्या संख्येनुसार आपल्याकडे लागवडीस उपलब्ध असलेल्या क्षेत्रापैकी २० टक्के क्षेत्र चारापिके लागवडीसाठी राखीव ठेवणे आवश्यक आहे. सकस व हिरवा चारा उपलब्ध करण्यासाठी ओलिताखालील हमखास पाण्याची उपलब्धता असणाऱ्या अल्पशा क्षेत्रातून हंगामी व बहुवार्षिक बागायती चारापिकांची लागवड करावी. कोरडवाहू क्षेत्रातील हलक्या ते मध्यम मुरमाड, डोंगर-उताराच्या चराऊ क्षेत्रात जेथे पर्जन्यमान अत्यंत कमी आहे आणि ज्या ठिकाणी कोणतेही पीक घेणे आर्थिकदृष्ट्या परवडत नाही, अशा जमिनीवर चारापिकांची लागवड करून जास्तीत जास्त चारा निर्मिती करावी.
चारापिकांचे नियोजन :
एकदल चारापिके : ज्वारी, बाजरी, मका, ओट इत्यादी.
द्विदल चारापिके : ल्युसर्न, बरसीम, चवळी, गवार इत्यादी.
त्यामुळे चारापिकांचे उत्पादन करताना एकच प्रकारचा चारा उत्पादन करून चालणार नाही, कारण जनावरांच्या आहारात एकदल आणि द्विदल चाऱ्याचे प्रमाण हे १:१ असे असायला हवे.
संपूर्ण वाढ झालेल्या एक जनावरास वर्षभर दररोज २५ ते ३० किलो एवढा एकदल आणि द्विदल चारा उपलब्ध होण्यासाठी दहा गुंठे क्षेत्र चारापिकांच्या लागवडीसाठी पुरेसे ठरते, याप्रमाणे एक हेक्टर क्षेत्रात दहा जनावरांसाठी पुरेसा चारा उपलब्ध केला जाऊ शकतो. याशिवाय वाळलेल्या चाऱ्याची गरज ही कडबा, सरमाड, भुस्सा, वाळलेले गवत इत्यादींपासून भागवली जाऊ शकते.
फळरोपवाटीका
Posted by chandanse in Agriculture, Development, Farming, Marathi on June 20, 2011