Archive for category राजभाषा
आल्हा
Posted by chandanse in भाषा अभिव्यक्ति, भाषा का उपयोग, माता पिता को दिशा-निर्देश, राजभाषा on November 27, 2011
आल्हा
हिन्दी
Posted by chandanse in भाषा अभिव्यक्ति, राजभाषा, राष्ट्रभाषा के लिए on November 26, 2011
हिन्दी शब्द की व्युत्पत्ति
प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन ने अपने ” हिन्दी एवँ उर्दू का अद्वैत ” शीर्षक आलेख में हिन्दी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में ‘स्’ ध्वनि नहीं बोली जाती थी। ‘स्’ को ‘ह्’ रूप में बोला जाता था। जैसे संस्कृत के ‘असुर’ शब्द को वहाँ ‘अहुर’ कहा जाता था। अफ़ग़ानिस्तान के बाद सिन्धु नदी के इस पार हिन्दुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी ‘हिन्द’, ‘हिन्दुश’ के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस्तु, भाषा, विचार को ‘एडजेक्टिव’ के रूप में ‘हिन्दीक’ कहा गया है जिसका मतलब है ‘हिन्द का’। यही ‘हिन्दीक’ शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में ‘इन्दिके’, ‘इन्दिका’, लैटिन में ‘इन्दिया’ तथा अंग्रेज़ी में ‘इण्डिया’ बन गया। अरबी एवँ फ़ारसी साहित्य में हिन्दी में बोली जाने वाली भाषाओं के लिए ‘ज़बान-ए-हिन्दी’, पद का उपयोग हुआ है। भारत आने के बाद मुसलमानों ने ‘ज़बान-ए-हिन्दी’, ‘हिन्दी जुबान’ अथवा ‘हिन्दी’ का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया। भारत के गैर-मुस्लिम लोग तो इस क्षेत्र में बोले जाने वाले भाषा-रूप को ‘भाखा’ नाम से पुकराते थे, ‘हिन्दी’ नाम से नहीं।
परिवार
हिन्दी का निर्माण-काल
हिन्दी की विशेषताएँ एवं शक्ति
हिन्दी के विकास की अन्य विशेषताएँ
- हिन्दी पत्रकारिता का आरम्भ भारत के उन क्षेत्रों से हुआ जो हिन्दी-भाषी नहीं थे/हैं (कोलकाता, लाहौर आदि।
- हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आन्दोलन अहिन्दी भाषियों ( महात्मा गांधी, दयानन्द सरस्वती आदि) ने आरम्भ किया।
- हिन्दी पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता की कहानी है।
- हिन्दी के विकास में राजाश्रय का कोई स्थान नहीं है; इसके विपरीत, हिन्दी का सबसे तेज विकास उस दौर में हुआ जब हिन्दी अंग्रेजी-शासन का मुखर विरोध कर रही थी। जब-जब हिन्दी पर दबाव पड़ा, वह अधिक शक्तिशाली होकर उभरी है।
- जब बंगाल, उड़ीसा, गुजरात तथा महाराष्ट्र में उनकी अपनी भाषाएँ राजकाज तथा न्यायालयों की भाषा बन चुकी थी उस समय भी संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की भाषा हिन्दुस्तानी थी (और उर्दू को ही हिन्दुस्तानी माना जाता था जो फारसी लिपि में लिखी जाती थी)।
- १९वीं शताब्दी तक उत्तर प्रदेश की राजभाषा के रूप में हिन्दी का कोई स्थान नहीं था। परन्तु २० वीं सदी के मध्यकाल तक वह भारत की राष्ट्रभाषा बन गई।
- हिन्दी के विकास में पहले साधु-संत एवं धार्मिक नेताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उसके बाद हिन्दी पत्रकारिता एवं स्वतंत्रता संग्राम से बहुत मदद मिली; फिर बंबइया फिल्मों से सहायता मिली और अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टीवी) के कारण हिन्दी समझने-बोलने वालों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई है।
हिन्दी का मानकीकरण
- शुद्ध अक्षरी कैसे सीखें –प्रो. मुरलीधर श्रीवास्तव,[2] एवं
- हिंदी की वर्तनी-प्रो. रमापति शुक्ल,[3]
भाषा-साम्राज्य के अंतर्गत भी शब्दों की सीमा में अक्षरों की जो आचार सहिता अथवा उनका अनुशासनगत संविधान है, उसे ही हम वर्तनी की संज्ञा दे सकते हैं।….वर्तनी भाषा का वर्तमान है। वर्तनी भाषा का अनुशासित आवर्तन है, वर्तनी शब्दों का संस्कारिता पद विन्यास है। वर्तनी अतीत और भविष्य के मध्य का सेतु सूत्र है। यह अक्षर संस्थान और वर्ण क्रम विन्यास है। [5]
मानकीकरण संस्थाएं एवं प्रयास
2.15.4 पूर्ण विराम के लिए खड़ी पाई (।) का ही प्रयोग किया जाए। वाक्य के अंत में बिंदु (अंग्रेज़ी फ़ुलस्टॉप .) का नहीं।
- तत्सम शब्द– ये वो शब्द हैं जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप बदले ले लिया गया है। जैसे अग्नि, दुग्ध दन्त , मुख ।
- तद्भव शब्द– ये वो शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें काफ़ी ऐतिहासिक बदलाव आया है। जैसे– आग, दूध, दाँत , मुँह ।
स्वर
वर्णाक्षर | “प” के साथ मात्रा | आईपीएउच्चारण | “प्” के साथ उच्चारण | IASTसमतुल्य | अंग्रेज़ी समतुल्य | हिन्दी में वर्णन |
---|---|---|---|---|---|---|
अ | प | / ə / | / pə / | a | short or long en:Schwa: as the a in above or ago | बीच का मध्य प्रसृत स्वर |
आ | पा | / α: / | / pα: / | ā | long en:Open back unrounded vowel: as the a in father | दीर्घ विवृत पश्व प्रसृत स्वर |
इ | पि | / i / | / pi / | i | short en:close front unrounded vowel: as i in bit | ह्रस्व संवृत अग्र प्रसृत स्वर |
ई | पी | / i: / | / pi: / | ī | long en:close front unrounded vowel: as i in machine | दीर्घ संवृत अग्र प्रसृत स्वर |
उ | पु | / u / | / pu / | u | short en:close back rounded vowel: as u in put | ह्रस्व संवृत पश्व वर्तुल स्वर |
ऊ | पू | / u: / | / pu: / | ū | long en:close back rounded vowel: as oo in school | दीर्घ संवृत पश्व वर्तुल स्वर |
ए | पे | / e: / | / pe: / | e | long en:close-mid front unrounded vowel: as a in game (not a diphthong) | दीर्घ अर्धसंवृत अग्र प्रसृत स्वर |
ऐ | पै | / æ: / | / pæ: / | ai | long en:near-open front unrounded vowel: as a in cat | दीर्घ लगभग-विवृत अग्र प्रसृत स्वर |
ओ | पो | / ο: / | / pο: / | o | long en:close-mid back rounded vowel: as o in tone (not a diphthong) | दीर्घ अर्धसंवृत पश्व वर्तुल स्वर |
औ | पौ | / ɔ: / | / pɔ: / | au | long en:open-mid back rounded vowel: as au in caught | दीर्घ अर्धविवृत पश्व वर्तुल स्वर |
<none> | <none> | / ɛ / | / pɛ / | <none> | short en:open-mid front unrounded vowel: as e in get | ह्रस्व अर्धविवृत अग्र प्रसृत स्वर |
- ऋ — आधुनिक हिन्दी में “रि” की तरह
- अं — पंचचम वर्ण – न्, म्, ङ्, ञ्, ण् के लिए या स्वर का नासिकीकरण करने के लिए (अनुस्वार)
- अँ — स्वर का अनुनासिकीकरण करने के लिए (चन्द्रबिन्दु)
- अः — अघोष “ह्” (निःश्वास) के लिए (विसर्ग)
व्यंजन
स्पर्श (Plosives) | |||||
अल्पप्राण अघोष |
महाप्राण अघोष |
अल्पप्राण घोष |
महाप्राण घोष |
नासिक्य | |
---|---|---|---|---|---|
कण्ठ्य | क / kə / k; अंग्रेजी: skip |
ख / khə / kh; अंग्रेजी: cat |
ग / gə / g; अंग्रेजी: game |
घ / gɦə / gh; Aspirated /g/ |
ङ / ŋə / n; अंग्रेजी: ring |
तालव्य | च / cə / or / tʃə / ch; अंग्रेजी: chat |
छ / chə / or /tʃhə/ chh; Aspirated /c/ |
ज / ɟə / or / dʒə / j; अंग्रेजी: jam |
झ / ɟɦə / or / dʒɦə / jh; Aspirated /ɟ/ |
ञ / ɲə / n; अंग्रेजी: finch |
मूर्धन्य | ट / ʈə / t; अमेरिकी अं.: hurting |
ठ / ʈhə / th; Aspirated /ʈ/ |
ड / ɖə / d; अमेरिकी अं.: murder |
ढ / ɖɦə / dh; Aspirated /ɖ/ |
ण / ɳə / n; अमेरिकी अं.: hunter |
दन्त्य | त / t̪ə / t; Spanish: tomate |
थ / t̪hə / th; Aspirated /t̪/ |
द / d̪ə / d; Spanish: donde |
ध / d̪ɦə / dh; Aspirated /d̪/ |
न / nə / n; अंग्रेजी: name |
ओष्ठ्य | प / pə / p; अंग्रेजी: spin |
फ / phə / ph; अंग्रेजी: pit |
ब / bə / b; अंग्रेजी: bone |
भ / bɦə / bh; Aspirated /b/ |
म / mə / m; अंग्रेजी: mine |
स्पर्शरहित (Non-Plosives) | ||||
तालव्य | मूर्धन्य | दन्त्य/ वर्त्स्य |
कण्ठोष्ठ्य/ काकल्य |
|
---|---|---|---|---|
अन्तस्थ | य / jə / y; अंग्रेजी: you |
र / rə / r; Scottish Eng: trip |
ल / lə / l; अंग्रेजी: love |
व / ʋə / v; अंग्रेजी: vase |
ऊष्म/ संघर्षी |
श / ʃə / sh; अंग्रेजी: ship |
ष / ʂə / sh; Retroflex /ʃ/ |
स / sə / s; अंग्रेजी: same |
ह / ɦə / or / hə / h; अंग्रेजी home |
- ध्यातव्य
- इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त वयंजन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी और वैदिक संस्कृत में सभी का प्रयोग किया जाता है ।
- संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज़ करना । शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा में कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था । आधुनिक हिन्दी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है ।
- हिन्दी में ण का उच्चारण कभी-कभी ड़ँ की तरह होता है, यानी कि जीभ मुँह की छत को एक ज़ोरदार ठोकर मारती है । परन्तु इसका शुद्ध उच्चारण जिह्वा को मूर्धा (मुँह की छत. जहाँ से ‘ट’ का उच्चार करते हैं) पर लगा कर न की तरह का अनुनासिक स्वर निकालकर होता है।
नुक़्तायुक्त ध्वनियाँ
वर्णाक्षर (आईपीए उच्चारण) |
उदाहरण | वर्णन | अंग्रेज़ी में वर्णन | ग़लत उच्चारण |
क़ (/ q /) | क़त्ल | अघोष अलिजिह्वीय स्पर्श | Voiceless uvular stop | क (/ k /) |
ख़ (/ x or χ /) | ख़ास | अघोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी | Voiceless uvular or velar fricative | ख (/ kh /) |
ग़ (/ ɣ or ʁ /) | ग़ैर | घोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी | Voiced uvular or velar fricative | ग (/ g /) |
फ़ (/ f /) | फ़र्क | अघोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी | Voiceless labio-dental fricative | फ (/ ph /) |
ज़ (/ z /) | ज़ालिम | घोष वर्त्स्य संघर्षी | Voiced alveolar fricative | ज (/ dʒ /) |
ड़ (/ ɽ /) | पेड़ | अल्पप्राण मूर्धन्य उत्क्षिप्त | Unaspirated retroflex flap | ड (/ ɖ /) |
ढ़ (/ ɽh /) | पढ़ना | महाप्राण मूर्धन्य उत्क्षिप्त | Aspirated retroflex flap | ढ (/ ɖʱ /) |
भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी
हिन्दी की गिनती
व्याकरण
- वर्ण विभाग– इसमें अक्षरों या वर्णों से संबंधित नियमों का ज्ञान होता है।
- शब्द विभाग– इसमें शब्दों के भेद आदि बताए जाते हैं।
- वाक्य विभाग– इसमें वाक्य रचना के नियमों का वर्णन होता है।
- विराम चिह्न के लिए खड़ी पाई (।) का प्रयोग करें, न कि अंग्रेजी के फुल-स्टोप(.) का।
- अंकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय अंकों का प्रयोग करें – 1,2,3…. न कि हिंदी अंकों का – १,२,३।
- सदा यी-ई वाली वर्तनी अपनाएं – गए, गई, हुए, लताएं, जाएंगे, लाए, लाई, इत्यादि, न कि गये, गयी, हुये, लतायें, लाये, लायी, इत्यादि।
- नुक्ता का प्रयोग केवल ड और ढ में करें (पेड़, पढ़)। जमीन, कानून, जवाब, फाइल, गरीब आदि में नुक्ता नहीं लगाई जाती है, ये सब हिंदी के अपने शब्द हैं। तेरहवीं सदी के तुलसीदास तक ने इनमें से कुछ शब्दों का प्रयोग किया है जैसे गरीबनवाज, जमीन, कानून, आदि, और कहीं भी नुक्ता नहीं है। लेकिन आजकल उर्दू भी देवनागरी लिपि में लिखी जाने लगी है। देवनागरी में जब उर्दू लिखी जाती है, तब ज, ग, क, फ आदि में नुक्ता लगाया जाता है, लेकिन हिंदी में इन व्यंजनों में नुक्ता नहीं लगता है।
- आजकल चंद्रबिंदु (ँ) का प्रयोग नहीं होता है, उसकी जगह अनुस्वार (ं) चलता है। इससे वेब साइट आदि में सफाई आती है क्योंकि जब पंक्तियों के बीच जगह कम हो, नीचे की पंक्ति के शब्दों के चंद्रबिंदु ऊपर की पंक्ति के शब्दों की उ, ऊ, ऋ आदि मात्राओं से उलझ जाते हैं जिससे पाठ अपाठ्य हो जाता है। इसलिए लताएं, हां, हंस आदि लिखें, न कि लताएँ, हाँ, हँस इत्यादि। अधिकांश हिंदी पत्र-पत्रिकाओं और हिंदी प्रकाशकों ने इस नियम को अपना लिया है।
- डाक्टर, आस्ट्रेलिया, फोकस आदि को उल्टा टोप (ॉ) लगाकर न लिखें। यह स्वर हिंदी का अपना नहीं है, अंग्रेजी के कुछ शब्दों में सही उच्चारण दर्शाने के लिए गढ़ा गया है। व्याकरण इसके प्रयोग की सम्मति नहीं देता है। अब डाक्टर, आस्ट्रेलिया, फोकस आदि हिंदी के अपने शब्द बन गए हैं और हिंदी भाषी इन्हें ऐसे ही बोलते हैं। डाक्टर से तो डाक्टरनी स्त्रीलिंग रूप भी बन चुका है। इस तरह के विदेशी भाषाओं के शब्दों को हिंदी में लिखते समय हिंदी की उच्चारण पद्धति का ध्यान में रखना चाहिए और यदि आवश्यक हो, इनके वर्तनी को बदल देना चाहिए, न कि नए स्वर ईजाद करके भाषा को अपाठ्य बनाना चाहिए।
- विद्वान, प्राचीन, पुस्तक, पुष्प आदि संस्कृत से आए शब्दों में हल चिह्न (्) न दें। हिंदी के सभी शब्द स्वतः ही व्यंजनांत हैं, उनमें हल चिह्न देना व्यर्थ है। ये सब शब्द हिंदी के अपने शब्द हो गए हैं और इन्हें बिना हल चिह्न के ही लिखा जाता है।
- दुख हिंदी का अपना तद्भव शब्द है, इसे दुःख के रूप में न लिखें।
- संक्षेपाक्षरों को जोड़कर लिखें, उनके अक्षरों के बीच रिक्त स्थान या बिंदी न रखें, यथा – भाजपा, न कि भा ज पा या भा.ज.पा., यूएसए न कि यू एस ए या यू.एस.ए., एचटीएमएल न कि एच टी एम एल या एच.टी.एम.एल., इत्यादि।
- दुहरा, दुबारा दुपहर, दुतल्ला, दुपट्टा, दुअन्नी आदि सही हैं, इन्हें दोबारा, दोपहर, दोतल्ला, दोअन्नी आदि के रूप में न लिखें। हिंदी में संख्यावाचक प्रत्यय बनाते समय संख्यावाचक शब्द का ह्रस्वीकरण होता है – यथा
एक – इक (इकतारा, इकन्नी, इकलौती) दो – दु (दुपहर, दुबारा, दुपट्टा, दुअन्नी) तीन – ति (तिपाया, तिकोना) चार – चौ (चौपाया) पांच – पंच (पंचमेल, पंचवटी) छह – छि (छियासी, छिहत्तर) सात –सत (सतरंगा, सतफेरा) आठ – अठ (अठन्नी) नौ – नव (नवदीप) कुछ उपयोगी संदर्भ ग्रंथ कोश1. फादर कामिल बुल्के का अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश, प्रकाशक – सुल्तान-चंद कंपनी, दिल्ली2. बृहद वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली, दो खंड, प्रकाशक, मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार। व्याकरण
- हिंदी व्याकरण, कामता प्रसाद गुरु, काशी नागरी प्रचारिणी सभा।
- हिंदी शब्दानुशासन, किशोरीदास वाजपेयी, काशी नागरी प्रचारिणी सभा।
- किशोरीदास वाजपेयी की अन्य भाषा संबंधी किताबें – हिंदी शब्द मीमांसा, हिंदी निघंटु, अच्छी हिंदी का नमूना, हिंदी वर्तनी और शब्द चयन, इत्यादि। ये सब अब वाणी प्रकाशन, दिल्ली से पुनः प्रकाशित हुई हैं। किशोरीदास वाजपेयी की रचनावली भी पांच खंडों में वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई हैं जिसमें उपर्युक्त सभी किताबें शामिल हैं।
संदर्भ
- ↑ विमिसाहित्य पर हिन्दी में वर्तनी
- ↑ श्रीवास्तव, प्रो. मुरलीधर (१९६०). शुद्ध अक्षरी कैसे सीखें. पटना: भारती भवन.
- ↑ शुक्ल, प्रो. रमापति (१९६०). शुद्ध अक्षरी कैसे सीखें. वाराणसी: शब्दलोक प्रकाशन.
- ↑ (आप्टे का कोश)
- ↑ भाटिया, कैलाश चन्द्र (प्रभात प्रकाशन). हिन्दी की मानक वर्तनी. नई दिल्ली: प्रभात प्रकाशन. pp. 144. 2645. का पृष्ठ २
- ↑ (नवभारत टाइम्स दिनांक 19.3.14)
- ↑ आचार्य वाजपेयी आजीवन इस समस्या से जूझते रहे, पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लिखते रहे और पुस्तकें भी प्रकाशित करते रहे, जिनमें से शब्द मीमांसा प्रथम संस्करण, 1958 ई.) तथा हिंदी की वर्तनी तथा शब्द विश्लेषण उल्लेखनीय हैं।
- ↑ विधि शब्दावली. १९८३.
राजभाषा
- राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है— राज–काज की भाषा। जो भाषा देश के राजकीय कार्यों के लिए प्रयुक्त होती है, वह ‘राजभाषा’ कहलाती हैं राजाओं–नवाबों के ज़माने में इसे ‘दरबारी भाषा’ कहा जाता था।
- राजभाषा सरकारी काम–काज चलाने की आवश्यकता की उपज होती है।
- स्वशासन आने के पश्चात् राजभाषा की आवश्कता होती है। प्रायः राष्ट्रभाषा ही स्वशासन आने के पश्चात् राजभाषा बन जाती है। भारत में भी राष्ट्रभाषा हिन्दी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ।
- राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है। हिन्दी को 14 सितंबर 1949 ई. को संवैधानिक रूप से राजभाषा घोषित किया गया। इसीलिए प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है।
- राजभाषा देश को अपने प्रशासनिक लक्ष्यों के द्वारा राजनीतिक–आर्थिक इकाई में जोड़ने का काम करती है। अर्थात् राजभाषा की प्राथमिक शर्त राजनीतिक प्रशासनिक एकता क़ायम करना है।
- राजभाषा का प्रयोग क्षेत्र सीमित होता है, यथा—वर्तमान समय में भारत सरकार के कार्यालयों एवं कुछ राज्यों- हिन्दी क्षेत्र के राज्यों में राज–काज हिन्दी में होता है। अन्य राज्य सरकारें अपनी–अपनी भाषा में कार्य करती हैं, हिन्दी में नहीं; महाराष्ट्र मराठी में, पंजाब पंजाबी में, गुजरात गुजराती में आदि।
- राजभाषा कोई भी भाषा हो सकती है, स्वभाषा या परभाषा। जैसे, मुग़ल शासक अकबर के समय से लेकर मैकाले के काल तक फ़ारसी राजभाषा तथा मैकाले के काल से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ती तक अंग्रेज़ी राजभाषा थी जो कि विदेशी भाषा थी। जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया जो कि स्वभाषा है।
- राजभाषा का एक निश्चित मानक स्वरूप होता है, जिसके साथ छेड़छाड़ या प्रयोग नहीं किया जा सकता।
- असमिया
- बांग्ला
- गुजराती
- हिन्दी
- कन्नड़
- कश्मीरी
- कोंकणी
- मलयालम
- मणिपुरी
- मराठी
- नेपाली
- उड़िया
- पंजाबी
- संस्कृत
- सिंधी
- तमिल
- उर्दू
- तेलुगु
- बोडो
- डोगरी
- मैथिली
- संथाली
- संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा के अधिकारिक प्रयोग के विषय में,
- संघ के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेज़ी भाषा के प्रयोग के निर्बन्धन के विषय में,
- उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में और संघ की तथा राज्य के अधिनियमों तथा उनके अधीन बनाये गये नियमों में प्रयोग की जाने वाली भाषा के विषय में,
- संघ के किसी एक या अधिक उल्लिखित प्रयोजनों के लिए प्रयोग किये जाने वाले अंकों के विषय में,
- संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच अथवा एक राज्य तथा दूसरे राज्यों के बीच पत्राचार की भाषा तथा उनके प्रयोग के विषय में, और
- संघ की राजभाषा के बारे में या किसी अन्य विषय में, जो राष्ट्रपति आयोग को सौंपे।
संघ की भाषा
- अनुच्छेद 343- संघ की राजभाषा–
- संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा।
- इस संविधान के प्रारम्भ से 15 वर्ष की अवधि तक (अर्थात् 1965 तक) उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए पहले प्रयोग किया जाता रहा था।
- संसद उक्त 15 वर्ष की अवधि के पश्चात्, विधि के द्वारा
- अंग्रेज़ी भाषा का; या
- अंकों के देवनागरी रूप का,
प्रादेशिक भाषाएँ
- अनुच्छेद 345— राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ (प्रादेशिक भाषा/भाषाएँ या हिन्दी; ऐसी व्यवस्था होने तक अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी)
- अनुच्छेद 346— एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा (संघ द्वारा तत्समय प्राधिकृत भाषा; आपसी क़रार होने पर दो राज्यों के बीच हिन्दी)
- अनुच्छेद 347— किसी राज्य की जनसंख्या के किसी अनुभाग द्वारा बोली जानेवाली भाषा के सम्बन्ध में विशेष उपबंध
सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय आदि की भाषा
- अनुच्छेद 348— सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में और संसद व राज्य विधान मंडल में विधेयकों, अधिनियमों आदि के लिए प्रयोग की जानेवाली भाषा (उपबंध होने तक अंग्रेज़ी जारी)
- अनुच्छेद 349— भाषा से सम्बन्धित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया (राजभाषा सम्बन्धी कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व मंज़ूरी के बिना पेश नहीं की जा सकती और राष्ट्रपति भी आयोग की सिफ़ारिशों पर विचार करने के बाद ही मंज़ूरी दे सकेगा)
विशेष निदेश
- अनुच्छेद 350— व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जानेवाली भाषा (किसी भी भाषा में)